मूळ गाणे : "सारंगा तेरी याद में"
http://youtu.be/8BZt0l8VzH4
हे ऐकून डोक्यातील किडा वळवळू लागला, व खालील ओळी सुचल्या.
सऽरंगा तेरी याद में जीभ हुई बेचैन
तीखे तुम्हारे स्वाद बिना
दिन कटते नहीं रैन, हो~
सऽरंगा तेरी याद में ...
वो इमली का घोल और हलदी, मिरची, तेल
कैसी खुशबू देता था अद्रक-लसन मेल
आज किधर को खो गयी
वो मछली की गैल, हो ...
सऽरंगा तेरी याद में ...
संग कबाब-ओ-तंदुरी, बीअर के दो घूँट
होते थे मेरे सामने. पडता था मैं टूट
सुख लेके दुख दे गयीं
क्यों, धीवरी, तू रूठ ? ...
सऽरंगा तेरी याद में ...
सऽरंगा तेरी याद में जीभ हुई बेचैन
तीखे तुम्हारे स्वाद बिना दिन कटते नहीं रैन
अब घर के रसोई में चलत बिरहा समीर
बाट तकूँ तेरी, सऽरंगा, आँखों में है नीर
Labels: विडंबन
1 Comment:
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- Radhika said...
10:31 pmI am sure "Surmai bhi ankhiyon mein nanhe-munne sapne de jaati hai"
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